Sunday, 12 June 2022

हिंदू साम्राज्य दिवस

कल ज्येठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी को हम सब ने हिन्दू साम्राज्य दिवस मनाया।मेरा भी एक शाखा स्थान पर बौद्धिक हुआ। शाखा में लगभग 40 की संख्या में अधिक प्रौढ़ थे और बौद्धिक रूप से अत्यंत संभ्रांत थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वर्तमान में भारत सरकार के सलाहकार की भूमिका निभाने वाले एक आई.ए. एस. अधिकारी ने की।मुझे 20 मिनट बोलना था। अनेकों विचारों के बीच एक विचार प्रबल होकर जो आज भी ये लेख लिखने पर मुझे मजबूर कर रहा है वो ये है कि कैसे हम इस दिवस को अपने भविष्य की जीवन शैली में होली, दिवाली की तरह उतार दें।

 जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने 6 प्रमुख पर्वों में इसे उल्लास के साथ मनाता है, ठीक उसी प्रकार एक एक सनातनी, वैदिक परंपरा का अंश मात्र भी निर्वहन करने वाला इसे अपने जीवन शैली का अंग बना ले। यही योजना चिंतन का विषय है।क्योंकि ना केवल आज की पीढ़ी ने बल्कि गौर करें तो पश्चिम से संपर्क में आई पिछली पीढ़ी ने ही वहां के रीति रिवाज पर्वो को मनाना प्रारम्भ कर दिया। मदर्स डे, फादर डे, वैलेंटाइन डे तमाम दिन बिना सार्थकता और महत्व को समझे हमने अनुसरण में लेकर आये। जहां प्रतिदिन माता पिता के आशीर्वाद से प्राम्भ हो, श्री गणेश जी की माता पिता परिक्रमा से प्रेरित हो वहां प्रतिदिन ही मातृ-पितृ दिवस है। हमारे ग्रंथो में भक्ति का मार्ग को भी तार्किकता से स्वीकार करने को कहा गया है ताकि धर्मांधता ना फैले,विकृति ना आये, प्रासिंगकता और वैज्ञानिकता बनी रहे। बालकों को शिवाजी पता है क्योंकि किताब में पढ़ा पर उनकी जीवन गाथा का महत्वपूर्ण दिवस उनका राज्याभिषेक नहीं पता है। हालांकि इसमें अन्याय उन इतिहासकारों ने किया जो भारतीय गौरव के सारे अध्याय शब्दरहित कर के चले गए।जो किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी लिख गए। उसके बाद अन्याय उन सरकारों का भी रहा जो उस अन्याय पर रोक नहीं लगा पाईं। खैर केवल सरकार पर तोहमत लगाना ठीक नहीं है। कुछ हमें खुद भी सम्भलना होगा। प्रसन्नता कभी कभी तब होती है जब लगता है हम जागृत हो रहे हैं।

हम जागृत हो रहे हैं किस स्तर पर? ये परखना आवश्यक है। इसी पर चिंतन करना आवश्यक है। क्योंकि स्वप्न पूर्ण करने के लिए श्रम करना होगा। सिद्धांतों पर क्रियान्यवन करना होगा। तभी आप शुक्रवार के बाद अपने मन माने शनिवार की परिकल्पना को सिद्ध कर सकते हैं अन्यथा तो शनिदेव कर्मों के साथ फल के विषय पर न्याय करने के लिए ही जाने जाते हैं। कर्म अनुसार ही फल प्राप्त होगा। मीठी भेली चाहिए तो श्रम का मीठा गन्ना सौंपना होगा।

श्रम के मीठे गन्ने से मेरा तात्पर्य है अपनी अगली पीढ़ी को तैयार करने पर श्रम करने से  है। मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, तार्किक हर आयाम पर। संघ, सरकार, संगठन, दल बड़ी संख्याओं में कार्य कर ही रहे हैं। पर इस विषय पर व्यक्तिगत रूप से मैं से हम की यात्रा करनी होगी। स्वयं से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र की दिशा में बढ़ते हुते कार्य करना होगा। मैं करूँगा, तो मुझसे प्रभावित लोग भी करेंगें और हम की श्रृंखला बनेगी। अनन्त श्रृंखला जैसे अपनी वैदिक सनातन शैली। ऐसी श्रृंखला जो सार्वभौमिकता से स्वीकार भी हो और व्यवहारिक भी हो। कहने का अर्थ है- जहां-जहां वैदिक संस्कृति का पालन करने वाले जन हैं तहां-तहां ज्येठ मास की शुक्ल पक्ष त्रियोदशी को हिन्दू  साम्राज्य दिवस मनाया जाए, उससे एक दिन पूर्व दशहरा जिस पर जल दान है और दशहरा से एक दिन पूर्व निर्जला एकादशी जिसमें एक दिवस जल ग्रहण ना करने का संकल्प है। अर्थात हमारी जीवन शैली का एक-एक दिन पर्व है, प्रासंगिक है वैज्ञानिक है। प्रत्येक दिन पिछले और अगले दिन से जुड़ा है वैज्ञानिक रूप से, ना कि अंग्रेज़ी कलेंडर के माफिक केवल तारीखों की संख्याओं में।

ऐसे यदि हम कर पा रहे हैं तो आज के समय में भी हिन्दू साम्राज्य दिवस मनाने की प्रासंगिकता को जीवंत रखते हुए। उसे भविष्य के लिये गौरवशाली बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हमें वर्तमान से भविष्य साधना है। क्योंकि यदि मुगल काल के कष्टदाई दुःख हैं तो महाराणा जैसी प्रेरणा और अशोक जैसा गौरव शाली इतिहास भी है हमारे पास।समय चक्र परिवर्तन शील है। ये बदलेगा ओर हमें अपनी संस्कृति, जीवन शैली के मौलिक सिद्धांतों से समझौता नहीं करना है। यही बात अगली पीढ़ी को समझानी है, जिससे ये साम्राज्य अखंड बना रहे। देश और भूमि परिधियों के नाम कुछ भी हो पर नियम हमारे हों।जीवन शैली कुछ भिन्न हो सकती है पर मूल में हम दिखाई देने चाहिए। 
शेष अगले अंकों में........... 


दीपक शंखधार, नोएडा।