अब जो संघ के परम पूज्य सरसंघचालक मोहन भागवत जी कह रहे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम का डी. एन.ए एक है। ये कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। पहले भी कहते आये हैं। संघ के तमाम अधिकारी इस बात का दवा वैज्ञानिकता के आधार पर करते आए हैं और बताते आये हैं कि सबके पूर्वज हिन्दू ही हैं।पर आज इस बात पर इतना शोरगुल क्यों है आखिर परेशानी क्या है? दरअसल परेशानी है मुस्लिम और तुष्टिकरण की लीक पर राजनीति करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों को। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है, जो अपनी एकरूप, वस्तुनिष्ठ शैली के लिए जाना जाता है।अब अगर उसके चीफ ने कुछ कहा है तो इसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ने वाला है। तो मुस्लिम के वोट बैंक की राजनीति करने वालों के पेट में दर्द क्यों ना हो?
सर्वे भवन्तु सुखिनः, और वसुधैव कुटुम्बकम की राह चलने वाला पथिक भला मानव-मानव में फर्क क्या जाने और माने? पर मानव और दानव में भेद होता है उसे समझने की भरपूर आवश्यकता है। आज आवश्यकता केवल अगस्त्य मुनि के तरह एक सुरक्षा आवरण तैयार कर लेने की नहीं है अपितु आवश्यकता है राम की तरह समस्त दानव प्रजाति का समूल नष्ट करने की। ख़ैर! इस पर आगे लिखूंगा।
अब इसके राजनीतिक मायने क्या हैं ये भी समझते चलें। जब भारत सरकार में अटल थे तब भी सबका साथ सबका विकास की नीति थी। यही कारण था अटल सबके प्रिय थे। यही संघ है- सबका प्रिय। बस ये उनको अप्रिय है जो दानव हैं, जो समाज का कार्य नहीं करना चाहते। जो मानवता को समान भाव से नहीं देखते। आज जब तीन तलाक हलाला, कश्मीर जैसे विषयों को सुलझा लिया गया है तब लगता है सबका विश्वास भी कायम हुआ है।सबका विश्वास कायम होते ही राष्ट्र उस बयार में बहने लगा है जिस ओर राष्ट्रीयता रूपी भाव की पवन चलती है। अब हिन्दू मुस्लिम सब एक ही हो जाएंगे तो उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा और खत्म कांग्रेस और बचता ही क्या है?संघ ने सबको हिन्दू बनाया नहीं है क्योंकि बनाने की जरूरत नहीं है। इसलिए इसका धर्मांतरण से कोई संबंध भी नहीं है। भारत में रहने वाले लोगों की एक ही जीवन शैली है, एक ही सांस्कृतिक सभ्यता विरासत है जिसे हम "हिंदुत्व" कहते हैं। अब तक इस बात को आज के विपक्ष ने कभी राष्ट्रवासियों को समझने नहीं दिया। आज इस विषय को राष्ट्रवासी समझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बता ही चुके हैं कि सूर्यनमस्कार के बहुत से आसन नमाज़ पढ़ने के आसनों से समान हैं। तो लोगों को योगी का भी स्टैंड समझ आ चुका है। ख़ैर! बात वही है बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएंगी। तो ये लोग जो राष्ट्र समाज को जाति, सम्प्रदाय को तोड़ने का काम करते रहे अब उनकी खैर नहीं। अवाम ने 2014, 2017,2019 में अपना रुख बता दिया। आगे 2022, 2024 की तैयारी है।इन सब कारणों से भागवत जी उवाच के तरह तरह के मायने और आयाम दिखाने का प्रयास किया जा रहा है।
ये लेख आपने पढ़ा, इसके लिए धन्यवाद। पढ़कर टिप्पणी अवश्य करें। आपके सवाल जवाब ही प्रोत्साहन हैं। आगे और भी विषयों पर लिखता रहूंगा। अपने विचार आप तक प्रेषित करता रहूंगा। अभी के लिए जय सिया राम।
नमस्कार
दीपक शंखधार