Sunday, 12 June 2022
हिंदू साम्राज्य दिवस
Sunday, 16 January 2022
कर्मयोगी महेश
महेश अर्थात "महा ईश"।अब कोई महा ईश ऐसे ही नहीं बन जाता। भाई तपस्या करनी पड़ती है। तपस्या रूपी यज्ञ में कर्म आहूत करना पड़ता है। तब जाकर सिद्धि प्राप्त होती ही और तब एक कर्मयोगी महेश कहलाता है। मतलब महेश होना पराकाष्ठा है। इस कर्मयोग का ही सुफल है कि व्यक्ति सिद्ध है। महेश विष को गले मे धर कर उसकी पीड़ा को सहकर निरंतर राजा की बगिया के फूलों को गंगा रूपी जल प्रदान करने वाले हैं।जहाँ अस्तित्व संकट में रहता हो ऐसे स्थान पर स्वयं को स्थापित करना।अपने समाज को सुरक्षा हेतु आश्वस्त करना। ऐसे ही कोई कोई महादेव नहीं हो जाता। समाज के रक्षण की चिंता करनी होती है। राजाओं के लड़के जिन पशु पक्षियों का शिकार जीवन भर शक्ति मद में करते हैं। महादेव उन का भी रक्षण करते हैं। आसान नहीं महेश हो जाना।राजा की बगिया के फूल महेश के चरणों को तो छू सकते हैं पर समान्तर कभी नहीं हो सकते। पर छू भी तभी सकते हैं जब स्वयं महेश चाहे। क्योंकि महेश तो कंठ में गरल को रोककर, गले में भयंकर सर्पों को धारण कर ऐसी दुर्गम परिस्थित में भी शीश पर चंद्रमा और गंगा प्रवाह कर समाज को शांति और सुखता प्रदान करते हैं।
अभी के लिए इतना ही.. शेष अगले अंको में। अभी तो अपने महेश को पहचान कर उन्हें ताकत प्रदान करिए क्योंकि अभिमानियों को तो कभी कभी लगता है कि वो महेश समेत हिमालय उठा लेंगें। पर अभिमान भंग के लिए परशुराम भी बनना पड़ता है।
Tuesday, 6 July 2021
भागवत जी डी. एन. ए परीक्षण और राजनीति
अब जो संघ के परम पूज्य सरसंघचालक मोहन भागवत जी कह रहे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम का डी. एन.ए एक है। ये कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। पहले भी कहते आये हैं। संघ के तमाम अधिकारी इस बात का दवा वैज्ञानिकता के आधार पर करते आए हैं और बताते आये हैं कि सबके पूर्वज हिन्दू ही हैं।पर आज इस बात पर इतना शोरगुल क्यों है आखिर परेशानी क्या है? दरअसल परेशानी है मुस्लिम और तुष्टिकरण की लीक पर राजनीति करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों को। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है, जो अपनी एकरूप, वस्तुनिष्ठ शैली के लिए जाना जाता है।अब अगर उसके चीफ ने कुछ कहा है तो इसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ने वाला है। तो मुस्लिम के वोट बैंक की राजनीति करने वालों के पेट में दर्द क्यों ना हो?
सर्वे भवन्तु सुखिनः, और वसुधैव कुटुम्बकम की राह चलने वाला पथिक भला मानव-मानव में फर्क क्या जाने और माने? पर मानव और दानव में भेद होता है उसे समझने की भरपूर आवश्यकता है। आज आवश्यकता केवल अगस्त्य मुनि के तरह एक सुरक्षा आवरण तैयार कर लेने की नहीं है अपितु आवश्यकता है राम की तरह समस्त दानव प्रजाति का समूल नष्ट करने की। ख़ैर! इस पर आगे लिखूंगा।
अब इसके राजनीतिक मायने क्या हैं ये भी समझते चलें। जब भारत सरकार में अटल थे तब भी सबका साथ सबका विकास की नीति थी। यही कारण था अटल सबके प्रिय थे। यही संघ है- सबका प्रिय। बस ये उनको अप्रिय है जो दानव हैं, जो समाज का कार्य नहीं करना चाहते। जो मानवता को समान भाव से नहीं देखते। आज जब तीन तलाक हलाला, कश्मीर जैसे विषयों को सुलझा लिया गया है तब लगता है सबका विश्वास भी कायम हुआ है।सबका विश्वास कायम होते ही राष्ट्र उस बयार में बहने लगा है जिस ओर राष्ट्रीयता रूपी भाव की पवन चलती है। अब हिन्दू मुस्लिम सब एक ही हो जाएंगे तो उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा और खत्म कांग्रेस और बचता ही क्या है?संघ ने सबको हिन्दू बनाया नहीं है क्योंकि बनाने की जरूरत नहीं है। इसलिए इसका धर्मांतरण से कोई संबंध भी नहीं है। भारत में रहने वाले लोगों की एक ही जीवन शैली है, एक ही सांस्कृतिक सभ्यता विरासत है जिसे हम "हिंदुत्व" कहते हैं। अब तक इस बात को आज के विपक्ष ने कभी राष्ट्रवासियों को समझने नहीं दिया। आज इस विषय को राष्ट्रवासी समझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बता ही चुके हैं कि सूर्यनमस्कार के बहुत से आसन नमाज़ पढ़ने के आसनों से समान हैं। तो लोगों को योगी का भी स्टैंड समझ आ चुका है। ख़ैर! बात वही है बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएंगी। तो ये लोग जो राष्ट्र समाज को जाति, सम्प्रदाय को तोड़ने का काम करते रहे अब उनकी खैर नहीं। अवाम ने 2014, 2017,2019 में अपना रुख बता दिया। आगे 2022, 2024 की तैयारी है।इन सब कारणों से भागवत जी उवाच के तरह तरह के मायने और आयाम दिखाने का प्रयास किया जा रहा है।
ये लेख आपने पढ़ा, इसके लिए धन्यवाद। पढ़कर टिप्पणी अवश्य करें। आपके सवाल जवाब ही प्रोत्साहन हैं। आगे और भी विषयों पर लिखता रहूंगा। अपने विचार आप तक प्रेषित करता रहूंगा। अभी के लिए जय सिया राम।
नमस्कार
दीपक शंखधार
Sunday, 4 July 2021
राजनीति के पन्ने- पन्ना 1
राजनीति यूं तो एक अच्छा शब्द है जो एक सत्ता के पक्ष विपक्ष दोनों परिप्रेक्ष्य में सटीक बैठ जाता है। फिर भी राजनीति शब्द के मायने "राज्य के लिए नीति निर्धारण" करने वाली शक्तियों से ही सम्बद्ध होते हैं। ख़ैर! देश काल परिस्थिति अनुसार सब बदलता है ये भी बदला। आज राजनीति के व्यवहारिक मायने कुछ बदले और सभी विषयों की तरह इस विषय ने भी विभिन्न आयामों के सफ़र को तय किया। 1947 से पूर्व भारत में और 14वीं शताब्दी से पूर्व विश्व में राजशाही किस्म का शासन था और आज भारत और विश्व के अनेकों हिस्सों में लोकतांत्रिक।
भारत के परिप्रेक्ष्य में यदि बात करें तो ध्यान में आएगा कि दो ही राजनैतिक दल राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहारिक रूप से वृहदता को प्राप्त कर पाए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। भारतीय जनता पार्टी मूलतः हिन्दू संगठनों की राजनीतिक परिकल्पना है।
हिन्दू संगठनों की राजनीतिक परिकल्पना अर्थात क्या?
एक ऐसा राजनैतिक विचार जो किसी विदेशी आक्रांताओं का सेफ्टी वाल्व, राजनीतिक महत्वकांक्षा का केंद्र ना हो। जो भारत की संस्कृति को जीवन्त बनाये रखने में सक्षम हो।ध्यान रहे विधायिका ही वह इकाई है जहां से सामाजिक परिकल्पनाएं लोकतांत्रिक राज्य में संवैधानिक रूप से व्यवहार प्राप्त करतीं हैं।यही आवश्यक है क्योंकि कोई संगठन राष्ट्र से आगे नहीं है। सामाजिक संगठन के तौर पर कोई संगठन अच्छे समाजसेवी तैयार कर सकता है जो भविष्य में अच्छे नेतृत्व के रूप में अपनी भूमिका तय कर सकते हैं।
इस सिद्धांत को यदि ठीक ठीक किसी ने अपनाया तो वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू संगठनों के राजनैतिक आयाम वाले दल भारतीय जनता पार्टी ने। भारतीय जनता पार्टी का संगठन मंत्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक होता है। प्रचारक निजी जीवन में एकला चलो की नीति अपनाते हुए सामाजिक व्यवस्था में सामूहिक रूप से चलता है यानी उसका अपना कुछ नहीं है सब समाज से, समाज के द्वारा और समाज के लिए है।ऐसा चरित्र वान व्यक्ति यदि किसी राजनैतिक दल का मेरूदण्ड हो तो ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि संगठन का चरित्र कैसा होगा।इसी प्रकार भाजपा में अधिकतर नेतृत्व मूल स्वभाव से स्वयंसेवक ही होता है। जो सामाजिक कार्य करने की प्रेरणा, शैली, अचार, विचार और व्यवहार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही सीख समझ और परख कर आता है।ऐसे में अपवाद छोड़कर लगभग अधिकतम संख्या विचार के प्रति निष्ठावानों की हो जाती है।उसी की परिणीति है 2014,2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम।
वर्तमान में राज्यों और केन्द्र की स्थिति से ये नि:संकोच कहा जा सकता है कि भाजपा अपने राजनैतिक उच्चतम शिखर पर है। ऐसे में ये ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विचार को व्यवहार में स्थायित्व देने में विकृति ना आ जाये क्योंकि ऐसी संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा के सक्रिय सदस्यों में मूल स्वयंसेवकों की संख्या से अधिकतम संख्या बाहरी लोगों ने प्राप्त कर ली है। जिनके लिए भाजपा केवल राजनीति करने का आयाम है जबकि स्वयंसेवकों को हिंदुत्व संस्कृति को संवैधानिक रूप से समृद्ध करने का रास्ता है भाजपा।
ऐसे में महत्वपूर्ण दायित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है क्योंकि भाजपा चाहे राजनैतिक रूप से प्रबलतम स्थिति में हो पर इस विश्वास का आधार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तपस्या है। ये ठीक वैसा ही है जैसे महृषि दधीचि की तपस्या से इंद्र को वज्र शस्त्र मिला। गांधी के विचारों के कारण कांग्रेस को शासन।
शेष अगले अंकों में.....
दीपक शंखधार, नोएडा
Wednesday, 30 December 2020
हमला संघ कार्यलय मथुरा
#संघ_कार्यालय #हमला #मथुरा #उत्तरप्रदेश
ये मथुरा संघ कार्यालय पर हमला नहीं, हिंदुत्व को जीने वाले, उसके लिए जीवन की निजी व्यवस्थाओं का त्याग करने वाले स्वयंसेवकों के मान सम्मान पर है। घर के भेदी हो या कोई अमानवीय, गैर-सामाजिक समुदाय इन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।
ये वही संघ है जो अखण्ड भारत का केवल स्वप्न ही नहीं देखता उसे पूर्ण करने के लिए अपने स्वयंसेवकों को बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटा। जब जब समाज को मानवता के रक्षण हेतु मनुष्यों की आवश्यकता हुई तब देवतुल्य स्वयंसेवकों ने अपने निजी जीवन की परवाह किये बिना अपना सर्वस्व दिया। कहने को भारत 73 वर्षों से स्वतंत्र होकर निजतंत्र में जी रहा है, परन्तु आज भी ऐसे कोने हैं जहां सरकारी सुविधाओं का लाभ मौलिक भारतीयों को नहीं मिल पाया। संघ ने उन सभी तक पहुंच स्थापित कर सबको एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। एकल पाठशाला, चिकित्सक स्वास्थ्य संबंधी उपलब्धता, अनाज वितरण, रोटी वितरण, मलिन बस्तियों में स्वच्छता कार्यन्वयन, उन सभी तक पहुंचाने का कार्य किया जो राष्ट्र के संसाधनों से अछूते रहे। इस कार्य को करने के लिए संघ ने कभी सरकारी पैसे का प्रयोग नहीं किया। सरकारी सहायता तो दूर आपातकाल जैसे कालखंडों में यातनाओं से ना केवल स्वयंसेवक प्रचारक जूझे अपितु संबंधित परिवारों का जीवन दूभर कर दिया तत्कालीन सरकार ने।
ख़ैर! सबको नज़रन्दाज़ किया गया और सभी राष्ट्रवादियों ने मिलकर एक सरकार खड़ी की। पर आज भी गैर-राष्ट्रवादी, दानवी शक्तियां मौकापरस्ती के साथ जब जब कुछ अनिष्ट करने का अवसर मिलता है तब तब अनिष्ट करती हैं। पर आज राष्ट्र के जागने का समय है, राष्ट्र जागरण का समय है। आज ये हमला हमें अचेत अवस्था से जागृत होने का संकेत देता है। अब भी नहीं जागे तो ये ध्यान रखना कभी जाग नहीं पाओगे।
केवल #जय_श्री_राम कहने से काम नहीं चलेगा,हनुमान जी की आरती करने से केवल कार्य सिद्ध होने वाले नहीं हैं। हमें कृत्यों को अपने कृत्यों में कार्यान्वित करना होगा। तभी कालनेमि और रावण जैसे दानवों का संहार संभव है। हमें मानवीयता के लिए निष्ठावान तो बनना पड़ेगा पर उस भेष में छुपे दानव भी चिन्हित करने होंगें और उनका अंत भी करना होगा। क्योंकि नियम कानून और मानवता की सीमाएं केवल मानवों तक सीमित हैं। वहशी और दरिंदों, राक्षसों के ये ये सब नहीं है। अपितु इनके लिए एक ही दंड है--मृत्यु दण्ड, ये तो शरिया कानून भी बताता है, तो इसे कार्यान्वित करने में देर नहीं करनी चाहिए। आज सरकार राष्ट्रवादी है तो हम आशा करते हैं कि इस हमले से उत्तरप्रदेश और केंद्र सरकार के आंख, कान खुलेंगें और गैर सामाजिक तत्वों पर उसी अनुरूप कार्यवाही भी की जाएगी।
दीपक शंखधार, नोएडा
Wednesday, 4 September 2019
राजनैतिक राम राम और श्याम श्याम
राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में हिंदुत्व पर काम करने वाले संगठनों और दलों पर अक्सर ये इल्ज़ाम आता है कि भगवान राम के नाम का राजनीतिकीकरण कर दिया पर मैं समझता हूँ कि इसे विपक्ष ने भगवान राम को सदैव राजनीतिक दृष्टि से ही देखा है। 1990 में मंदिर का पट खुलना और आम लोगों को एक दूरी से भगवान के दर्शन की अनुमति जब राजीव सरकार ने दी तो साथ ही तुष्टिकरण की राजनीति सिद्ध करने के लिए कुछ समय बाद पी.वी नरसिम्हा सरकार भाजपा शासित प्रदेशों में सरकार बरखास्तगी के आदेश देती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी जब पुरानी राष्ट्रीय पार्टी के "तथाकथित युवा" और राष्ट्रीय अध्यक्ष जनेऊ पहनकर अपनी बहनजी के साथ मंदिर मंदिर घूमने का दिखावा चुनाव तक सीमित करते हैं तो वास्तविकता में इस अंग्रेज़ी पार्टी का चेहरा निकल कर सामने आता है और जनता भी समझ जाती है कि ये केवल राजनैतिक राम-राम और श्याम-श्याम है। श्याम-श्याम से याद आया कि अभी तक युवा अध्यक्ष कान्हा दर्शन करने वृंदावन गलियों में नहीं गए। शायद अगर गए होते तो देख पाते पिछले दशकों से उनके परबाबा, दादी, पापा और मम्मी की सरकार ने वहां की गलियों का चौड़ीकरण किया है और वहां की सैनिटेशन व्यवस्था को कितना समर्थ मजबूत किया है।
हालांकि ये ज़िम्मा वर्तमान सरकार हिंदुत्व राष्ट्रवादी सरकार का भी है कि जो काम छूट गए हैं उन पर ध्यान दे क्योंकि ये देश ग्रामीण अंचल, आस्था और अध्यात्म से समृद्ध देश है।सोमनाथ से बात शुरू होती है तो ये केवल राम मंदिर निर्माण से पूर्ण नहीं होती। ये कृष्ण जन्मभूमि, जम्मू कश्मीर में खंडित मंदिर और प्रत्येक स्थल जहां जहां नापाक हाथों ने आध्यात्मिक आस्था को शिकस्त देने का प्रयास किया है हर उस स्थल के जीर्णोद्धार तक पहुंचती है। लोगों ने अपनी आस्था सरकार में व्यक्त की अब सरकार को चाहिए कि अपनी आस्था लोगों की आस्था में व्यक्त करे।
भारत में धार्मिक स्थल केवल आध्यात्म का विषय नहीं हैं अपितु ये पर्यटन, अर्थव्यवस्था, रोजगार, रचनात्मकता , सभ्यता-संस्कृति, राष्ट्र जागरण को दशा-दिशा प्रदान कर्म वाले स्तम्भ हैं। सरकार चाहे कोई भी हो पर सरकार को इनके सुंदरीकरण को लक्षित करना चाहिए। जिस प्रकार हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था का बड़ा भाग कृषि से सम्बद्ध उसी प्रकार जन-चेतना, कार्य-प्रेरणा का आयाम धार्मिक स्थलों से सीधा संबद्ध है।
आवश्यता है आज स्वयं को जगाते हुए देश के जागरण की ताकि भारत माता का गौरव परम वैभव को प्राप्त करे।
और "स्वयं अब जागकर हमको जगाना देश है अपना" की पंक्तियां अपना मूर्त रूप ले सकें क्योंकि "राजनैतिक राम- राम और "श्याम-श्याम" की ये देश "राजनैतिक राम राम" ही करता है।
जय हिंद जय भारत
प्रगतिशील समाजवादी विचारधारा से युक्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
27 सितंबर 1925, विजयदशमी के विजय दिवस पर स्थापित संघ, राष्ट्र और धर्म की लड़ाई लड़ते हुए समग्र विश्व में सर्वाधिक संगठित, अनुशासित, वृहद और गैर-विवादित संगठन के रूप में स्वयं को स्थापित कर चुका है। प्रचारक रूपी संत और देवतुल्य स्वयंसेवक प्रतिपल राष्ट्रनिर्माण की ज्वाल को अपनी कार्मिक आहुति से अक्षुण्य बनाये हुए हैं। चाहे वह भारतीय स्वतंत्रता का बौद्धिक, शारीरिक रूपी युद्ध हो ।आज़ाद भारत में समाजवादी विचारधारा को स्थापित करने, आपातकाल में कष्ट झेलते हुए राष्ट्रनिर्माण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, राम मंदिर के लिए संत समाज के दिखाए सन्मार्ग पर चलने हेतु संकल्प हो या विषम परिस्थितियों में लोकनिर्माण में भूमिका अदा करने का विषय, संघ प्रतिपद प्रतिपल अपना दायित्व निभाता रहा और बड़ा संगठन होने के नाते से सहिष्णुता भाव जैसे बड़प्पन का भाव भी दर्शाता रहा।
संघ विस्तार के विषय में राजनैतिक कयास जो भी हों, पर वास्तविकता यह है कि "चरैवेति-चरैवेति" के सिद्धांत को पकड़ कर अपने संपर्क की पहुँच समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्थापित करता गया। यही मूल है इसके विस्तृत रूप का। राष्ट्रवादी लोगों को राजनैतिक शिखर तक पहुंचाने के पीछे एक ही भाव "समाज कल्याण" ने संघ को हर वर्ग तक स्थापित कर दिया।
अब आप सोचेंगे कि संघ ने धीरे धीरे समाजकल्याण के लिए किया क्या?ऐसा आप समझ पाएंगे यदि आप किसी स्वयंसेवक या प्रचारक जीवन को नजदीक से देखें समझें तो। प्रातः शाखा जाकर माँ भारती की आरती से अपना दिन प्रारंभ करने वाला स्वयंसेवक अपने साथी स्वयंसेवकों के साथ योग, व्यायाम और भारतीय पारंपरिक खेलों के माध्यम से ना केवल स्वयं को ऊर्जावान्वित करता है अपितु अन्य लोगों के बीच भी इन सभी मूल्यों के प्रति जागरण करता है। शाखा से विकिर करने उपरांत स्वयंसेवक अपने प्रतिदिन दिनचर्या में व्यस्त होकर सांसारिक दायित्वों की पूर्ति करता है। इस प्रकार एक स्वयंसेवक अपने जीवन के सभी आयामों पर साम्य स्थापित करने में सफल होता है। जीवन की इसी क्रिया को गीता के अनुसार भी योग कहा है। वास्तविक योग वही है जिसमें आप अपने जीवन के सामाजिक, आर्थिक और पारंपरिक सभी आयामों में स्थापित कर ले। ये तो केवल संघ की गृहस्थ या विद्यार्थी स्वयंसेवक व्यवस्था है।
अब इसकी दूसरी व्यवस्था को समझिए जो "प्रचारक जीवन" से होकर गुजरती है। बेहद सामान्य, सहज, सरल तपस्वी जीवन की परिकल्पना है प्रचारक जीवन।प्रचारक, पूर्णकालिक रूप से प्रतिपल स्वयम को तपाते हुए अपने जीवन की सम्पूर्ण पटकथा में केवल एक ही शब्द लिखता है - "राष्ट्र"।प्रचारक के लिए यही राष्ट्र माँ-पिता, मित्र-सहोदर, या जीवन का हर अंग हो जैसे। केवल एक ही लक्ष्य कर्तव्यनिष्ठ, देशभक्त समाजवादी विचारधारा से लबरेज़ स्वयंसेवकों को तैयार करना। जो विद्यार्थी, गृहस्थ, नौकरीपेशा, व्यवसायी, के रूप में समाज के भीतर रहकर राष्ट्र के लिए प्रतिपल समर्पण हेतु तैयार रहें। प्रचारक जीवन पूर्णतया गृहत्यागी, श्वान निद्रा, वकोध्यानं, अल्पाहारी, जैसे सिद्धान्तों पर टिका अटल जीवन है। शायद इसी जीवन को जीने वाले दधीची समान तपस्वियों की तपस्या है कि वर्तमान में संघ क्या करता है इसका लोगों को पता हो या ना हो पर स्वयंसेवक हर सकारात्मक दिशा और क्षेत्र में विद्यमान है ये आभास समूचा विश्व समझ चुका है। चाहे वह खेल, विद्या-विद्यालय, कला, सेवा, प्रचार-प्रसार, व्यवस्था, सांस्कृतिक समरसता, सांस्कृतिक एकता, धर्मिक समरसता हो संघ का स्वयंसेवक प्रतिदिशा में अपना योगदान दे रहा है।
ऐसी व्यवस्था में विकसित हुआ संघ यदि वर्तमान में जहां खड़ा है वो एक प्रतिमान है नियमित और संयमित जीवन का। मेरे (दीपक शंखधार) विचार से संघ पर नकारात्मक टिप्पणी करने का अधिकार उन लोगों को बिल्कुल नहीं है जिन्होनें राजनीतिक पराकाष्ठाओं को प्राप्त करने उपरांत देश को हानि पहुंचाई, समाज को जाति, धर्म, सम्प्रदाय में तोड़ने का कार्य किया। अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए हर नकारात्मक प्रयोग समाज के मध्य किया। यदि विचार और विश्लेषण किया जाए तो देखने में आता है कि संघ अपना लक्ष्य धीरे-धीरे, शांतिपूर्ण प्रयोग से प्राप्त करता है क्योंकि उसके मूल भाव में व्यवस्थित जीवन शैली और अनुशासन है। संघ एक तरफ स्वयंसेवकों को राष्ट्र की व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए किसी भी पल से गुजरने की प्रेरणा देता है तो दूसरी ओर दंड प्रहार के माध्यम से राष्ट्रविरोधी आतातायियों से समाज की रक्षा हेतु युद्धकौशल भी सिखाता है। शांति, सभ्यता और रक्षण के बीच इसी सामंजस्य की कला है संघ। इस प्रकार प्रारम्भ से ही संघ स्वयं के विषय में अपने कार्यक्रमों के माध्यम से इस अवधारणा के प्रेषण और स्थापन्य में सफल होता दृष्टिगत होता है कि संघ केवल एक संगठन मात्र नहीं है अपितु ये राष्ट्रविचारधारा का एक ऐसा सुगंधि ज्योति पुंज है जो ना केवल सुगंधि से समाज को महकाता है अपितु एक ऐसी सकारात्मक ज्योति भी प्रदान करता है जिसके प्रकाश में हमारा राष्ट्र हिंदुस्तान विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर भी होता है।
ये मेरे (दीपक शंखधार) के निजी विचार हैं। यदि इन विचारों से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो करबद्ध क्षमा प्रार्थी हूँ।
दीपक शंखधार, नोएडा
9910809588