Thursday, 14 September 2017

जीवन की स्वर्णिम शैली हिंदी

    स्वरचित पंक्तियों से अपने जीवन का प्रणरूपी उद्देश्य बताते हुए माँ हिंदी के विषय में यही कहना चाहता हूँ-

           "प्रण होगा मेरा कि अब हिंदी हिंदुस्तान बनें
         गाया जाए गान धरा पर वह हिंदी का गान बनें
      हिंदी ने स्वीकारा सबको, जैसा था अपनाया सबको
                   हिंदी ही अब अपना मातृ-गान बने
              प्रण होगा मेरा कि अब हिंदी हिंदुस्तान बनें
           गाया जाए गान धरा पर वह हिंदी का गान बनें"


अपने मुख से निकले प्रथम शब्द माँ से लेकर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 तक हिंदी को मातृ भाषा से राजभाषा तक सुशोभित होते देखता हूँ तो महसूस होता है कि हिंदी मेरे मन-प्राण से लेकर हिंदुस्तान के कण-कण की जुबान है।पत्रकारिता, साहित्य-लेखन, कवि-सम्मेलन, लोकगीत, नुक्कड़ नाटकों और मंचों के माध्यम से हिंदी की अक्षुण्य मशाल ज्वलंत देखकर लगता है कि हिंदी का हर बेटा अपनी आखिरी श्वांस अपनी माँ के साथ जीना चाहता है।
       मैं-हम, तू-तुम-आप जैसे शब्दों की व्यंजना हिंदी ना केवल प्रेम-समर्पण-स्वाभिमान-सम्मान की परिपाटी स्थापित करती है अपितु संस्कार-सदगुणों से परिपूर्ण एक सभ्यता स्थापित करती है। इन सब के बीच विभिन्न सरकारी महकमों और सर्वोच्च न्यायिक तंत्रों से हिंदीं की दूरी देख ऐसा महसूस होता है जैसे मानों जीवन के एक आयाम की उच्च शिखा पर बैठकर एक बेटा अपनी माँ को ही ऊंचाइयों का गुरूर दिखा रहा हो।
      वर्तमान युग संचार-तकनीक युग है और विभिन्न एप, वेबसाइट के माध्यमों से हिंदी को मजबूत बनाने की मुहिम चल रही है। यह मुहीम हिंदी माँ के "दीपक की दीप्ति" को अनवरत ज्वलंत रखेगी। हिंदी अ-अज्ञानी से लेकर ज्ञ-ज्ञानी तक का साधनायुक्त सफर है। इसलिए मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ की हिंदी प्रेम-समर्पण-श्रद्धा-स्वाभिमान-अनुसरण-गतिशीलता की साधनायुक्त बोली, भाषा एवम् परिभाषा है।

2 comments:

  1. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है. वाग्देवी अपको हिंदी को समृद्ध के लिए निरन्तर आशीष दें.

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