हिंदुत्व को नष्ट करने की चेष्टा करने वालों को मेरी कविता "हिन्दू : जीवन दर्शन" ये बताने के लिए पर्याप्त है कि सनातन और वैदिक संस्कृति ने विश्व को वो सब दिया जो जीवन हेतु आवश्यक था। आज वैदिक संस्कृति 2074 संवत् देख रही है अर्थात तारीखों में भी लिखित रूप से हम सबसे आगे हैं।
क्षमा, दान, तप, त्याग, संयम, समर्पण को परिपाटी पर खरा उतरा हिन्दू जीवन दर्शन 17 बार मोहम्मद गोरी क्षमा करता है। आर्यव्रत पर नीचता की आँख उठाने वाले सिकंदर को परास्त करता है, सेल्युक्स निकेटर को पराजित करके उसकी बेटी को अपने देश की बहू बनाकर ससम्मान अपना रिश्तेदार बनाता है। भारत की शरणागत सभी संस्कृतियों को स्वयं में स्थान देता है ।पर दुःख तब होता है जब हमारे द्वारा शरण पाये हुए कुछ मिशनरी हमारे आस्तीन के सांप बन बैठते हैं। मर जाना तब हो जाता है जब कुछ उच्च पदों पर आसीन हिन्दू (पी. चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे) जैसे लोग हिंदुत्व और भगवा को आतंकवाद से जोड़कर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का कार्य करते हैं। तब भी हम अपनी शालीन भाषाशैली और कविता के सहज माध्यम से उन्हें ये बताने का प्रयास करते हैं कि भगवा और हिंदुत्व क्या है?
जिस सनातन संस्कृति में सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने, सूर्य-नमस्कार से लेकर रात्रि सोने में क्या खाएं क्या ना खाएं ? कैसे आचरण करें और अपने सभी आचरणों को वैज्ञानिकता के आयामों पर भी सिद्ध करती हो। संकल्प से सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हो। मनुष्य के अंदर प्रचंड पौरुष प्राप्त करने की विधि बताती हो। जिससे मनुष्य पत्थर को उँगलियों से मसल सकता है, ध्यान और एकाग्रता के दम पर एक स्थान पर रहकर सम्पूर्ण विश्व को देख सकता हो समझ सकता हो। पुष्पक विमान सरीखे विमान बनाने की विधि से तब अवगत हो गया हो जब आर्यव्रत छोड़ सम्पूर्ण विश्व नग्न बदन घूम रहा था, सर छुपाने को छत तलाश रहा था।उस वक़्त सम्राट अशोक "धम्म" की परिभाषा पर चर्चा कर रहे थे।
हालांकि विश्व स्तर पर देखने को मिलता है कि रूस सरीखे देश भारत को देवों की भूमि मानते हैं और हिंदुत्व को ईश्वर पाने का पंथ। परिणामस्वरुप ना जाने कितने लाख लोग प्रति वर्ष हिन्दू धर्म अपना रहे हैं। हिन्दू धर्म अपने तार्किकता आधारी मानवता केंद्रित कर्म सिद्धान्त से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। शायद यही वजह है कि हम हिन्दू गर्व से कह सकते हैं कि शून्य के रूप में गिनती, योग के रूप में शक्ति, गीता के रूप में कर्म की भक्ति, धर्म के रूप में निष्ठा-समर्पण-सेवा, व्यवस्था के रूप में सामाजिक पदक्रम-अनुक्रम सिद्धान्त विश्व को दे पाए और विश्व गुरु बन पाए।
आज भी विश्व बिरादरी में भारत की छवि शान्तिप्रिय देशों के रूप में की जाती है।भारत आज भी आवश्यकता पडने पर प्रत्येक देश की तन-मन-धन से सहायता करता है। एक विकासशील देश होते हुए भी किसी विकसित देश से कम योगदान भारत का नहीं रहा किसी भी स्तर पर। यह समर्पण भाव हमें अपने धर्मगुरुओं और राजगुरुओं से आया है। इस श्रेणी में चाणक्य, विश्वामित्र, गुरु द्रोणाचार्य सरीखे ना जाने कितने गुरुओं का नाम संलग्न है। महऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों का वज्र बना देवो के राजा इंद्र को केवल इसलिए दान कर दिया था ताकि इस धरती पर धर्म की स्थापना हो। उसी वैदिक और सनातन रीति-नीति पर तब का आर्यव्रत और अब का हिंदुस्तान वर्तमान में भी रथी होकर अपना सफर तय कर रहा है।
इन्हीं सब बातों से विश्व सनातनी रीति-नीति का कायल रहा है।इसलिए भारत को आज भी विश्व अपने गुरु के रूप में देखता है।
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