Thursday, 14 September 2017

"रोहिंग्या - विश्व पटल पर उभरती चुनौती"

जब कुरान की आयतें मानवता का पाठ सिखातीं हों, तब भी इस्लामिक जनसंख्या का कुछ हिस्सा शिया-सुन्नी, जीव-हत्या के नाम पर धर्म की परिभाषा गढ़ता हो।इन्हीं सब के बीच वर्तमान में एक मुद्दा ज्वलंत होता है - रोहिंगाओं का मुद्दा। रोहिंग्या, मुस्लिम धर्म से संबद्ध मूलतः बंगाल के निवासी थे। जिन्हें उपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों ने म्यमाँर के रखाइन (तब बर्मा के आराकन) नामक स्थान पर विस्थापित कर दिया था।
मसला ये है कि वहीँ पर मुसलमानों का एक और वर्ग है जिन्हें "पंथय मुसलमान" (चीन से विस्थापित मुस्लिम) कहा गया, जो अपने धर्म-व्यापार-शिक्षा-संस्कृति को लेकर बहुत ही निष्ठावान और संकल्पित है।
ज़ाहिर है जो संस्कृति-शिक्षा-व्यापार को लेकर चिंतित है वह शांत और गंभीर होगा पर कुछ समय से ये "पंथय मुसलमान" भी बहुत परेशान और विचलित है जिसका कारण है - "हिंसक रोहिंग्या मुसलमान".....
ये रोहिंग्या अपनी नागरिकता को लेकर परेशानी में हैं और कभी भारत, कभी बांग्लादेश, कभी पाकिस्तान,  और विश्व के अनेकों देशों में शरण लेने के लिए प्रयासरत हैं पर "सहानुभूति" होते हुए भी कोई भी देश या मानवाधिकार की बात करने वाली संस्था इनकी वकालत करने को तैयार नहीं है कारण है इनका - "हिंसात्मक रूप".......

जी हां ये इतने हिंसात्मक है कि पिछले कई दशकों से जिन पंथय मुसलमानों (जिनसे इनके एक धर्म-संस्कृति का नाता है) के साथ रहते हुए भी ये सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे।
अब ऐसे में भारत के आगे एक चुनौती है इनको संरक्षण दे या ना दे? भारत एक शान्तिप्रिय और सबको गले लगाने वाला देश है पर किसी ने कहा है -
                                         "ओते पाँव पसारिये जेती लांबी सौर"

ज़ाहिर है कि हमारे पास संसाधन सीमित हैं और जनसँख्या अधिक। ऐसे में हम इन्हें मूलभूत सुविधाएं रोटी-कपडा-मकान-रोजगार कहाँ से उपलब्ध कराएंगे।
इसी सब के साथ हमें अपने देश की आंतरिक सुरक्षा का भी ख्याल रखना है क्योंकि एक तो "हिंसक होने का दाग" और ऊपर से विभिन्न देशों के कर्ज़दार या उनसे सम्बन्ध रखने वाले रोहिंग्या क्योंकि कहा भी जाता है-
                                           " पेट की भूंख क्या ना करा दे साहब"

फिर ये महाराणा प्रताप के वंशज भी नहीं जिन पर हम ये भरोसा कर लें कि सूखी घास की रोटी खा लेंगे पर सिद्धान्तों से समझौता नहीं करेंगें। ये अपने देश में ही (जहां के दशकों से वासी हैं) अपनी अलग सेना बनाकर विद्रोह कर चुके हैं। रोहिंग्याओं का सेना बनाना और नृशंस हत्यारे होना (बौद्धों की हत्या, पंथय मुसलमानों की हत्या) ये बताने के लिए काफी है कि ये भारत में भी बहुत कुछ अनर्थ कर सकते हैं। तो प्रश्न उठता है कि ऐसे शरणार्थी क्यों संरक्षित किये जाए जो कल हमारे लिए मुसीबत बन जाएँ? हमारे समक्ष नक्सलवादी, वामपंथी लोग आंतरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से चुनौती बनकर खड़े हैं।
रोहिंग्याओं का अधिकारों के लिए हिंसक हो जाना ऐसा भी दर्शाता है कि कहीं ये चीन से संबद्ध तो नहीं ऐसे में भारत को कूटनीति से काम लेना होगा क्योंकि हम "अतिथि देवो भवः", "वसुधैव कुटुम्बकम", "महात्मा बुद्ध" और "महावीर" की परंपरा हैं। मानवता धर्म निभाने हेतु हम संकल्पित हैं पर ये देखने की भी आवश्यकता है कि शरणागत कोई  ख़ुफ़िया दूत, दुश्मन की चाल या हमें नुकसान पहुंचाने से संबद्ध तो नहीं।
   
वर्तमान और विगत रिकॉर्डों के अनुसार रोहिंग्या संगठित रूप में हथियारों से लैस एक खतरनाक प्रजाति हो गयी है इसीलिये विश्व का कोई भी   संगठन और देश सहानुभूति होते हुए भी इनके पक्ष में कदम उठाने को तैयार नहीं।

हालांकि वो मानव ही क्या जिसमें करुणा ना हो पर फिर भी स्वयं जब मानव ही नहीं रहेगा तो संस्कृति,सभ्यता विस्तारित कैसे होंगी?

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